शुक्रवार, 20 मार्च 2009

शबे मालवा का जादू


आप किसी शहर पर मुग्ध होना चाहें तो कभी-कभी बेवजह भी हो सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कोई लड़का किसी लड़की और कोई लड़की किसी लड़की पर। मुग्धता कभी-कभी गुण देखकर आती है और कभी मुग्धता गुणों को चिन्हित करती है। आमतौर पर आप जिस जगह, समाज और शहर में रहते हैं उससे ऊबे हुए रहते हैं, लेकिन कोई एक चीज होती है, जिस पर आप का दिल बार-बार निसार होता है। अब देखिए न! इंदौर में लाख बुराइयाँ हों लेकिन इसका खाने का अंदाज और मौसम हमेशा दिल लूट लेता है। लोग दिनभर की भागदौड़ से फुरसत होकर खाने के लिए कुछ खास अड्डों पर जमा हो जाते हैं। राजवाड़ा, छप्पन और टोनी कॉर्नर जैसी कुछ जगहें खाने के रसिकों के लिए हैं। दंगों के बाद सुरक्षा के लिहाज से राजवाड़ा रात को कुछ सूना-सूना सा रहता है, वरना पूरी रात ऐसा माहौल रहता था जैसे होलकरों के यहाँ बारात आई हो।

खैर! आज अपना दिल खाने पर नहीं मौसम पर आया हुआ है। शबे मालवा को जितनी बार सलाम किया जाए, उतना कम। इसे बाजार नहीं कुदरत गुलजार करती है। एक हजार वसंत एक तरफ और मालवा की रात एक तरफ। मई-जून की गरमी में भी शाम ढ़लते ही ठंडक घुलने लगती है। ऐसा लगता है जैसे हवा नर्मदा और शिप्रा में स्नान करके इंदौर में रात बिताने आई हो। आपके कमरे में कुदरती हवा आती हो और आप एसी वगैरह के शौकीन नहीं हैं, तो रात सपनों में कटेगी। १५ दिन अगर तेज गर्मी पड़ गई तो १६वें दिन से आसमान में बादल टहलते हुए आ जाएँगे और हल्की बूंदाबादी के बाद मौसम फिर हसीन हो जाएगा। पिछले तीन साल से यह मौसम मुझे दंग किए हुए है।

दंग होने वाली बात इसलिए भी कि यहाँ से पचास किलामीटर की दूरी पर महाकाल की नगरी उज्जैन है, वहाँ का मौसम यहाँ से बिलकुल अलग। जब यहाँ का तापमान ३०-३२ डिग्री सेल्सियस रहता है तब वहाँ पारा ४० के आसपास पहुँच जाता है। इसी तरह सत्तर किलोमीटर की दूरी पर ओंकारेश्वर है, वहाँ की गर्मी भी निमाड़ के मिर्ची की तरह मार्च के बाद से ही लाल करने लगती है। फिर इस शहर में ऐसा क्या जादू है कि यहाँ की रात मन को संतोष देती है और जीने का सलीका सिखाती है। कुदरत की संरचना भी कितनी अजीब है कि वह कुछ ही किलोमीटर में अपना श्रृंगार बदल लेती है।

आज की ही बात। पूरे दिन खूब गर्मी पड़ी। ऐसा लगा कि अब कूलर लगाना पड़ेगा। लो गबातचीत में मौसम के गरम होने की बात भी करते दिखे, लेकिन शाम होते-होते माहौल बदल गया। बिजली चमकी, बादल गरजे, आँधी आई और देखते ही देखते पानी गिरने लगा। रात तक मौसम फिर मजेदार। लोग मौसम में इतना रचे-बसे हैं कि मौसम पर बात भी बहुत करते हैं। आसमान में बादल छाए या कोई परिवर्तन हुआ तो अखबार बड़ी-बड़ी खबरें छापते हैं। मौसम की खबरों को चाव के साथ पढ़ा भी जाता है।

आप अगर इसे अतिशयोक्ति न मानें तो मालवा की रात कुदरत की आँखों का वह काजल है, जो किसी भी दिल को बल्लियों उछाल दे। सच में काला जादू।