रविवार, 15 मार्च 2009

इंदौर की रंगपंचमी


बड़ा ही अद्भुत शहर है इंदौर। इसकी उत्सप्रियता का कोई जवाब नहीं। दूर से देखने पर यह और शहरों की तरह साधारण दिखेगा लेकिन इसमें रहने पर इसके कुल-गोत्र का पता चलेगा। पिछले तीन सालों से मैं इस शहर के उत्सव का साक्षी हूं और इसके आनंद को महसूस कर रहा हूं। होली तो पूरा हिंदुस्तान मनाता है लेकिन रंगपंचमी पर रंग खेलने की परंपरा शायद ही देश के किसी दूसरे शहर में होगी। यहां लोग रंग भी ऐसा खेलते हैं कि दूसरे शहरों की होली लाज से पानी-पानी हो जाए। रंगपंचमी को पूरे दिन रंगों की बहार रहती हैं। हर चेहरे रंग में डूबे हुए, हर गाल पर गुलाल। रंग केवल हाथ से एक-दूसरे को नहीं लगाया जाता। पिचकारी से, मिसाइल से, गुब्बारे से रंग मारते हैं। सड़कें, मुहल्ले, घरों के छज्जे सभी लाल हो जाते हैं। रंग उत्सव मनाते हैं। हजारों की टोलियां निकलती हैं, जो गेर कहलाती हैं। सभी मस्ती में। लगता है किसी और ही दुनिया से आए लोग हैं। उन्हें दीन-दुनिया की चिंता नहीं होती। बस रंग...रंग...और रंग।

अलग-अलग मोहल्लों से निकलने वाली गेरें राजवाड़ा पर इकठ्ठा होती हैं। ऐसा लगता है जैसे रंगीलों का महाकुंभ हो। वहां रंग पंचम सुर में गाते हैं और सुर नाचते हैं। हर पैर थिरकता मिलेगा, हर गला गुनगुनाता हुआ। तकरीबन चालीस लाख की आबादी वाले इस शहर के लोगों का उत्साह देखकर ऐसा लगता है कि यहां न तो कोई समस्या है, न कोई गम।

इस रंगपंचमी का आनंद वही जान सकता है जो इसमें शामिल हुआ हो।

होली के दिन जो इंदौर को देखेगा तो लगेगा कि यह कुछ नीरस सा है। तब उसे मथुरा और बरसाने की होली का मजा आएगा। तब उसे दूसरे शहरों का रंग अपनी ओर खींचेगा, लेकिन रंगपंचमी पर जो यहां आया तो वह सब भूल जाएगा। फिर इस शहर के रंग सारे देश के रंगों को औकात बताने लगते हैं। रंगपंचमी पर ऐसी फाग यात्राएं निकलती है कि लगता है रंगों से पुते चेहरों का सैलाब आ गया हो। शहर के बीस-पच्चीस हजार लोग राजवाड़े पर रंग खेलने के लिए ऐसे उमड़ते हैं जैसे सावन में बादल घिर आए हों। लोग एक-दूसरे को भले ही न जानें-पहचानें लेकिन गले मिलकर ऐसे शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं जैसे जन्मों का रिश्ता हो।

यूं तो इसी शहर में लाल और हरे रंग में कलह होती है और जमकर होती है। रंगों का झगड़ा सारी दुनिया में बदनाम करता है। कर्फ्यू लग जाता है, पुलिस की जान निकल जाती है, सरकार का दम फूलने लगता है, लेकिन रंगपंचमी पर मजाल कि रंग आपस में तू-तड़ाक भी करें। रंग आपस में गले मिलते हैं और एक-दूसरे में घुलते हैं। कभी अवसर मिले तो शरीक हों रंगों की इस बारात में।
(चित्र हिंद रक्षक संगठन की फागयात्रा का)

6 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

वाह, यह तो बढ़िया जानकारी दी आपने। रंग बिरंगी फोटो भी !
घुघूती बासूती

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

विवरण का विस्तार नहीं है, कुछ और होता।
यह टिप्पणी मॉडरेशन हटाएँ। बहुत तकलीफ देता है।

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया जानकारी..हम मना चुके हैं इन्दौर की रंगपंचमी!!

विष्णु बैरागी ने कहा…

सुन्‍दर वर्णन। किन्‍तु जब से 'फाग' और 'गेर' सांगठनिक स्‍वरूप में आए हैं तब से इनका लक्ष्‍य राजनीति हो गया है और इसीलिए लाल और हरे रंग में कलह होने लगी है।
जब तक 'संगठन' इन रंग यात्राओं से नहीं जुडे थे तब तक सब कुछ शान्‍त और सामान्‍य ही था

यदि आपके लिए सम्‍भव हो और आप उचित समझें तो अपने ब्‍लाग से 'शब्‍द पुष्टिकरण' की व्‍यवस्‍था अविलम्‍ब हटा लें।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अति सुन्दर

Abhishek ने कहा…

hello , Abhishek Tripathi here.....how r u bhaisahab...now i got ur blog...nice it ivery nice.....different something in representation of thoughts...keep it up...i also host my bibleographic blog- www.rewatheatre.blogspot.com
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