गुरुवार, 31 जुलाई 2008

मत कर रे तकरार पड़ोसी

मत कर रे तकरार पड़ोसी।
हम दोनों हैं यार पड़ोसी ।

चाँद यहाँ भी वैसा ही है,
जैसा तेरे द्वार पड़ोसी।

एक- दूसरे के दुक्खों में,
रोये कितनी बार पड़ोसी।


अपनी-अपनी रूहों का हम,
करते हैं व्यापार पड़ोसी।

रोटी-बेटी के नातों पर,
मत रख रे अंगार पड़ोसी।

बम का मजहब बरबादी है,
दिल की बोली प्यार पड़ोसी।

हम लड़ते हैं चौराहे पर,

हँसता है संसार पड़ोसी।

आ मिल बैठें पंचायत में,
बन जायें परिवार पड़ोसी।

  • ओम द्विवेदी

बुधवार, 30 जुलाई 2008

दोहे - दीप

करे रोशनी आजकल, मंत्रीजी की टीप।
फाइल- दर- फाइल बुझा, लोकतंत्र का दीप।

सिंहासन के पास है, सिंहासन का घात।

दीप तले हरदम रहे, एक छोटी सी रात।

सूरज ने जब से किया, जुगुनू के संग घात।

लाद रोशनी पीठ पर, घूमे सारी रात।
  • ओम द्विवेदी