बुधवार, 12 नवंबर 2008

दोहा पंचामृत

जिसकी-जिसकी पीठ पर, पड़ी समय की मार।
दर- दर ढूढे जिंदगी, करता चीख-पुकार।


पग- पग पर फैला यहाँ, ईश्वर का विस्तार।
छोटी-छोटी आंख में, सपनों का संसार।

रिश्ते धरती की तरह, घूम रहे हैं गोल।
कब किससे मिलना पड़े, बोलो मीठे बोल।

सड़क कहीं जाती नहीं, जाता है इंसान।
बिना सड़क के जो गए, होते गए महान।

सिंहासन कितने हिले, गिरे कई प्रासाद।
दायर जब करना पडा, आहों को प्रतिवाद।
  • ओम द्विवेदी

4 टिप्‍पणियां:

rakeshindore.blogspot.com ने कहा…

Bai om ji ,
your are having a compleat poetik heart. save more time for writing work.It is assincial for awriter .Ithink you will give time for this .

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

सड़क कहीं जाती नहीं, जाता है इंसान।
बिना सड़क के जो गए, होते गए महान।

बड़ी अच्छी पंक्‍तियाँ है. बधाईयाँ

मुकेश कुमार तिवारी

rakeshindore.blogspot.com ने कहा…

Since long you have not posted any new artical , poem .

बेनामी ने कहा…

wwhhh bhai wahhh bahut nikha chape hai aisan aadrsh vachn padhi kai bahut neek laag