कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां बारी बारी
छिटकाईं जिनने चिनगारी
जो चढ़ गए पुण्य-वेदी पर
लिए बिना गरदन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे
जल-जलकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही हैं लपट दिशाएं
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चंद्र भूगोल खगोल
कलम आज उनकी जय बोल ।
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
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